राधा होना
बुद्ध ने कदाचित चुरा लिया था ये सिद्धांत कि जीवन दुख का मूल है । राधा का दुख देखकर उन्होंने कहा था शायद कि सर्वं दुखं दुखं। मैं जान रहा हूँ ऐसी कोई कथा नहीं है पर मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि आनंदवादी उत्सवधर्मी देश में दुखवाद और त्रासदी बहुत पहले से रची बसी है । राधा के प्रेम की परिणति कितनी बड़ी त्रासद थी और वह प्रेम इतना बड़ा था कि जो भौतिक रूप से मिल ही नही पाए कथांत में उन्हें संसारभर के प्रेमी अलग करके देख ही नहीं पाते । वो प्रेम ऐसा है कि कृष्ण की अकेली प्रतिमा कचोटती है अगर बगल में राधिका न हों तो । कक्षा पाँच में पहली बार नंद गाँव बरसाने और ब्रज यात्रा के स्कूल टूर पर गया था । सभी घूम रहे थे भक्ति भाव में पर मैं साला उदास मनहूस इंसान बचपन में भी चारों तरफ कुछ ऐसा ढूँढ़ ही लेता था । बहुत सी ऐसी चीज़ें दिखीं बरसाने में और नंदगाँव में भी जो अजीब थीं ऐसी चीज़ें जिन्हें केवल प्रेम की दृष्टि से देखा जा सकता है भक्ति की दृष्टि से शायद मुमकिन नहीं है। बस से उतर कर हमलोग पंक्तिबद्ध होकर आगे बढ़ रहे थे । गंतव्य था नंदगाँव यानि गोकुल की वही धरती वही घर जहाँ कृष्ण का बचपन बीता