राधा होना

बुद्ध ने कदाचित चुरा लिया था ये सिद्धांत कि जीवन दुख का मूल है । राधा का दुख देखकर उन्होंने कहा था शायद कि सर्वं दुखं दुखं। मैं जान रहा हूँ ऐसी कोई कथा नहीं है पर मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि आनंदवादी उत्सवधर्मी देश में दुखवाद और त्रासदी बहुत पहले से रची बसी है । राधा के प्रेम की परिणति कितनी बड़ी त्रासद थी और वह प्रेम इतना बड़ा था कि जो भौतिक रूप से मिल ही नही पाए कथांत में उन्हें संसारभर के प्रेमी अलग करके देख ही नहीं पाते । वो प्रेम ऐसा है कि कृष्ण की अकेली प्रतिमा कचोटती है अगर बगल में राधिका न हों तो । कक्षा पाँच में पहली बार नंद गाँव बरसाने और ब्रज यात्रा के स्कूल टूर पर गया था । सभी घूम रहे थे भक्ति भाव में पर मैं साला उदास मनहूस इंसान बचपन में भी चारों तरफ कुछ ऐसा ढूँढ़ ही लेता था । बहुत सी ऐसी चीज़ें दिखीं बरसाने में और नंदगाँव में भी जो अजीब थीं ऐसी चीज़ें जिन्हें केवल प्रेम की दृष्टि से देखा जा सकता है भक्ति की दृष्टि से शायद मुमकिन नहीं है। 
            बस से उतर कर हमलोग पंक्तिबद्ध होकर आगे बढ़ रहे थे । गंतव्य था नंदगाँव यानि गोकुल की वही धरती वही घर जहाँ कृष्ण का बचपन बीता है। उस समय भी सड़कें नहीं बनी थीं। अयोध्या की दुर्गति देखने वाले नंदगाँव देखते तो कहते कि ये तो आज भी द्वापर ही लग रहा । पथरीली सड़कें नापती पनिहारिनें सिर पर दो तीन गागर और हाथ में भी एक दो कलश लेकर पानी के स्थान पर जा रहीं थीं। पानी हमलोग के लिए बहुत कड़वा लगता है वहाँ । कुछ दूर आगे बढ़ा और गाँव की गलियों में पहुँचा तो दिखा घरों में जो गाय बछड़े बँधे थे वे खूब सजे हुए थे। सफेद गायों के पीठ पर मेंहदी आलते से कलाकृतियाँ बनीं थीं। इस तरह सजी थीं मानों अभी कृष्ण आएँगे चराने वही कृष्ण जो सदियों पहले घोड़ों के रात पर बैठकर चले गये थे अब गायों की संगति उन्हें कहाँ मोहती थी ? तमाम विधवा स्त्रियाँ यत्र तत्र थीं सब स्वयं में कृष्ण की गोपियाँ हैं ऐसा ही वे समझती थीं । सूखे होठों पर कृष्ण कृष्ण का नाम था । तुलसी की माला और सफेद वस्त्र । मैं सबकी गीली आँखें निहारते चल रहा था । न जाने किसने उन्हें यहाँ छोड़ा था। उनके आँखों में परिवार का इंतजार था या कृष्ण का मैं अनुमान नहीं कर पा रहा था लेकिन मुझे इंतजार दिख रहा था।  नंदगाँव में नंदबाबा के घर पहुँचा तो उस मंदिर में बीच में कृष्ण बलराम की प्रतिमा थी पत्थर की और उनके अगल बगल दोनों ओर नंदबाबा और यशोदा माता की पीतल की प्रतिमा...एक और प्रतिमा थी एकदम किनारे यशोदा माता के बगल में घूँघट लिए हुए । वो थी राधा की । राधा के गले में यहाँ मंगलसूत्र भी था । गोकुलवासियों ने उन्हें बहू बना ही लिया था । उस पागल लड़की को जिसनें एक पुरुष के प्रेम में सब कुछ निलाम कर दिया। नंदगाँव से सहित बरसाने की पूरी पहाड़ी पूरा ब्रज क्षेत्र किसी प्रतीक्षा में है सदियों से । सारी मूर्तियाँ केवल पत्थर लग रही हैं। एक अजीब सी मादकता है। कितना प्यार करते हैं से सब कृष्ण से वही कृष्ण जो छोड़ कर चला गया तो कभी नहीं लौटा।  
        बहुत प्रेम पसरा है वहाँ। चारों तरफ एक प्रतीक्षा है। पत्ता पत्ता फूल फूल इंतजार में है । कथाओं से निकलकर राधिका मानों उन्हें स्पर्श की हों । क्या हुआ होगा उस समय जब कृष्ण चले गये थे ? क्या यमुना सूख गयी थी ? क्या ब्रज के सदैव हरी भरी रहने वाली वाटिकाएँ मुरझा गयी थीं? क्या हमेशा रहने वाले वसंत को किसी पतझड़ ने निगल लिया था ? क्या पत्तियाँ पीली हो गयी थीं राधिका का चेहरा देख देख कर ? क्या वृंदावन की तुलसी मंजरियाँ हमेशा के लिए झर गयी थीं? क्या की थी राधिका उस बाँसुरी का जिसे श्याम उसे सौंप करे चले गये थे ... जिस वंशी का कूट संदेश पाकर वो पागल बिना सोचे समझे बहाने पे बहाने बनाकर दौड़े आ जाती थी । क्या उन गायों ने दूध देना बंद कर दिया था जो अपने बाल बच्चों के साथ कृष्ण के नेतृत्व में चरने जाया करती थीं। क्या यशोदा ने कभी मक्खन नहीं बनाया ? क्या गोपियाँ पानी ले आना बंद कर दी थीं? क्या पनघट मरघट हो चुका था ? क्या हुआ था उन गलियों का जिन गलियों में माखनचोर शान से घूमता था ? क्या हुआ उन ग्वालों का जो कृष्ण के आश्रय में दिनभर कुराफात मचाए रहते थे ? क्या हुआ उन सखियों का जो लोक लाज भुलाकर घर का काम धंधा छोड़कर कृष्ण के पीछे पीछे फिरती थीं? क्या हुआ उस ब्रजक्षेत्र का ? क्या हुआ था उस दिन ? कैसा था वो दिवस जब एक साथ उतने सारे लोग किसी एक व्यक्ति के वियोग में एक समान तड़प रहे थे ? क्या हुआ था उस राधिका का जो सभी सखियों में कृष्ण की प्रिम बनी रहती थीं कैसे बचाती होगी वो खुद को उन प्रश्न पूरित नजरों से ? कैसे समझाती थी वो खुद वो ? उसके बालपन के सपने कितने पक चुके होंगे न ? कच्ची मट्टियों को आकार मिल चुका था , उनकी नियति क्या फूटकर बिखरना ही था ? क्या करती थीं जब खिड़की से बाहर उदास आसमन को देखते हुए अचानक पीछे से पिता बृजभान आ जाते थे ? कैसे कहते होंगे बृषभान की भूल जा उस ग्वाले को जो मेरी फूल सी गुड़िया को उजाड़ कर चला गया। माँ के अचानक आ जाने पर क्या कहतीं थीं राधिका कि ये आँसू आँख में धूल जाने के कारण आए हैं ... बस यूँ ही... कुछ नहीं हुआ ... सब ठीक तो है। सुबह जब गीला तकिया देखती थीं माँ तो कैसे समझातीं थीं आँसू का मोल ?
 काले बादल देखकर लगा नहीं राधा को कि श्याम की छवि ऊभर आयी है और उसके बारिश में भीग कर आँसू छिप गये हों  पानी पानी होकर। जब रसोई में मदहोश खाना पकाते हुए इधर उधर चिमटे से कड़ाही से जलने के इधर उधर निशान देखकर पूछते थे परिवार वाले तो क्या कहती थी राधा ? जब दही बिलोते समय मक्खन अंत तक नहीं आता था और आँसू मक्खन की जगह चमकने लगते थे मोतियों की तरह दही के ऊपर मटकी में तो फिर ध्यान कहाँ है का क्या जवाब देती थीं राधिका ? ब्रज के वन कामन में किसी कदंब के नीचे कृष्ण के काँधे पर सिर रख कर देखे हुए अनंत दिवास्वप्नों को कैसे मिटाई थी राधा ?राधा ने कृष्ण से विवाह के सपनों को कैसे मन ही मन मारा ? कैसे रही हो आजीवन ? न सुहागन पूरी तरह और न ही विधवा। कृष्ण का नाम ले ले कर साँस लेने वाली उस बाँवरी लड़की का ने कैसे समझाया अपने मन को मरने तक? सीता समा गयीं थीं , राम पानी में डूब गये थे , कृष्ण पाँव पर लगे तीर से घायल हो कर मरे थे पर क्या हुआ था राधिका का ? बोलों न उपनिषदों ? बोलो न दंत कथाओं ? कुछ तो बोलो आख्यानों ? कुछ मिथक तो गढ़ दो ? बना दो मिथक कि कन्हइया राधा के मरने से पहले उसे जोर से गले लगा लिए थे , कह दो न कि उसके इंतजार की परिणति कृष्ण का दर्शन था , कह दो न उन आँसुओं को उसके प्रियतम के सुकोमल हाथों का स्पर्श मिल चुका था , कह दो न कृष्ण ने राधिका के पीले पड़े गुलाबी मायूस गालों को दोनों हाथों में भर लिया था , कह दो न कथाओं कि इस त्रासदी का अंत हुआ था , कह दो कि राधिका की माँग भर दी थी कृष्ण ने , कोई कहानी गढ़ दो मेरे मन को दिलासा देने के लिए....
          बचपन में कक्षा 9-10 में पवनदूतिका पढ़ा था । तभी से मन में था कि प्रियप्रवास पूरा पढूँगा। कमोजर मन पढ़ कर खूब रोया। हरिऔध जी ने राधिका को लोककल्याणकारी नायिका बनाया है । विरह के एक एक शब्द कलेजा निकाल लेते हैं । पर अंत का कोई वर्णन नहीं मिला मुझे वहाँ भी । सूरदास की राधा भी समझा देती हैं ज्ञानी उद्धव ...“ ऊधौ ! मन न भये दस बीस। ” भ्रमरगीतों के पदों मुझे अतृप्त पुकार विचलित करती रहती है। यमुना के गहरे रंग को देख कर बार बार मन में वो किवदंती याद आ जाती है कि राधिका जब घर समाज से अपने आँसू छिपाकर यमुना में झाँक कर खुद को देख देख कर रोती थी तो उसका काजल आँसुओं में बहकर यमुना में घुलते जाता था ... यमुना राधा के आँसुओं से काली हो गयी । मैंने संग्रह में एक गीत रखा था जहाँ यही भाव थे :- 
          श्याममय यमुना हुई है
          राधिका की ले निशानी 
          सब लुटाकर के मिला है
         आँख को उपहार आँसू।
                    आँख का शृंगार आँसू ।। 
बचपन से कितने ही गीत सुने हैं हमनें कृष्ण की बाँसुरी पर जैसे “ बाजे रे मुरलिया बाजे, अधर धरे मोहन मुरली पर ...” और “ श्याम तेरी बंशी ” जैसे गीत मन में बार बार उस बाँसूरी को दिव्य बना देते जिसे कान्हाँ राधिका के पास आख़िरी निशानी के रूप में छोड़ आए थे । लिखा था मैंने एक गीत उस पर - 
  “ प्राण के संगीत बिन मृत देह ढोती
          छोड़ कर जबसे गया वो बाँसुरी को ” 
क्या सोचती होंगी राधिका ? उन्हें सदियों तक कृष्ण के साथ मंदिरों में पूजे जाना मंजूर होता या ये सब छोड़कर बस किसी तरह अपने उस परम प्रिय का आजीवन का साथ चाहिए होता । न कंस होता , न शकुनि के पासे होते , न द्वारिका की स्थापना का दायित्व और न महखभारत रचाने का धर्म । काश वो उस महारास का कभी अंत ही नहीं होता । अनवरत बजती रहती कृष्ण की बाँसुरी , ढ़लती ही नहीं पूनम की चाँदनी, न मुरली थमती न राधिका के पाँव । होते साथ साथ  संसार के सबसे बड़े प्रेमी युगल । पढ़ते हुए पता चला था कि प्रियप्रवास का पुराना नाम हरिऔध ने ब्रजांगना विलाप रखा था बाद में बदल दिए थे । मैं वो भी सोचने लगता हूँ जो नहीं लिखा होता है । ब्रज के अंग कृष्ण बनें हों चाहे न बने हों ब्रजांगना राधा हैं । प्रिय के प्रवास का वियोग समेटे प्रियप्रवास में कवि वर्णन करते करते अंत में लिख ही देता है कि ऐसी पीड़ा अब तगत में किसी को न मिले - 
       “हे विश्वात्मा! भरत-भुव के अंक में और आवें।
         ऐसी व्यापी विरह-घटना किन्तु कोई न होवे।।”
कृष्ण के पहले जिनका नाम आएगा वो राधा होंगी । कृष्ण की अह्लादिनी शक्ति थीं या नहीं पर कृष्ण को कृष्ण बनाने वाली राधा थीं । कृष्ण जिसके प्रेम के कारण अमर हैं वो राधा हैं । तुम राधा होना तब जान पाओगे जब राधा बनकर देखोगे। तुम राधे बनों श्याम ...
                          - केतन 
                अगस्त 19 , 2022 
#जनमाष्टमी 
#राधा

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

उतने रंग छिपाए थे तुम

बेड़ियों में आजादी

#दिवाली