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बेड़ियों में आजादी

( १ )  रात्रि का द्वितीय प्रहर हो चला था, अश्विन की शीत हवाएँ पूस सी सिहरन दे रही थीं और हर पुलक में  न जाने कितनी स्मृतियाँ हावाओं सी छू कर निकल जा रही  थीं।त्रयोदशी के ‘अपूर्ण चंद्र 'से मौन संवाद करती  नंदिनी श्वेत दुशाला ओढ़े ‘ पूर्ण चंद्रिका’ सी उसे ही प्रतिस्पर्धा दे रही थी ।आँसूओं के अति स्राव के कारण उसकी कज्जल  हो चुकी आँखों के किनारे, चंद्रमा पे लगे दाग हो चले थे। जैसे चाँद  दाग को चाह कर हटा नहीं पाता है  वैसे ही नियति की यातना को आज नंदिनी। तुषार कण वातावरण में आच्छादित होकर  जैसे आज उसकी पीड़ा में सम्मिलित हो अश्रुक्रंदन कर रहे थे और नंदिनी मन में सहस्रों प्रश्न व उद्विग्नताएँ लिए निरीह निराश्रित हो चाँद को एकटक निहार रही थी।  छत के किनारे के सीढ़ियों से अनिरुद्ध प्रवेश करता है, पीछे से दबे पाँव अपराध भाव लिए असहाय सा। दीदी!  ठंड लग जाएगी बिमार हो जाओगी,  आप तनिक विश्राम कर लो। नंदिनी आँखें नीचे कर लेती है और आगे बढ़ती है।दीदी मुझे माफ कर दो  मैं पिता जी से....। दोनों जड़ एक लंबा अंतराल ; नंदिनी अनिरूद्ध के हाथ पर हाथ रखती है उसकी आँखे झर झर बहने लगती हैं, नंदिनी हाथ सि

#दिवाली

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 सजल झिलमिलाते प्रिये दो नयन में हर इक याद के आगमन की दिवाली      - केतन  24 अक्टूबर 2022

राधा होना

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बुद्ध ने कदाचित चुरा लिया था ये सिद्धांत कि जीवन दुख का मूल है । राधा का दुख देखकर उन्होंने कहा था शायद कि सर्वं दुखं दुखं। मैं जान रहा हूँ ऐसी कोई कथा नहीं है पर मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि आनंदवादी उत्सवधर्मी देश में दुखवाद और त्रासदी बहुत पहले से रची बसी है । राधा के प्रेम की परिणति कितनी बड़ी त्रासद थी और वह प्रेम इतना बड़ा था कि जो भौतिक रूप से मिल ही नही पाए कथांत में उन्हें संसारभर के प्रेमी अलग करके देख ही नहीं पाते । वो प्रेम ऐसा है कि कृष्ण की अकेली प्रतिमा कचोटती है अगर बगल में राधिका न हों तो । कक्षा पाँच में पहली बार नंद गाँव बरसाने और ब्रज यात्रा के स्कूल टूर पर गया था । सभी घूम रहे थे भक्ति भाव में पर मैं साला उदास मनहूस इंसान बचपन में भी चारों तरफ कुछ ऐसा ढूँढ़ ही लेता था । बहुत सी ऐसी चीज़ें दिखीं बरसाने में और नंदगाँव में भी जो अजीब थीं ऐसी चीज़ें जिन्हें केवल प्रेम की दृष्टि से देखा जा सकता है भक्ति की दृष्टि से शायद मुमकिन नहीं है।              बस से उतर कर हमलोग पंक्तिबद्ध होकर आगे बढ़ रहे थे । गंतव्य था नंदगाँव यानि गोकुल की वही धरती वही घर जहाँ कृष्ण का बचपन बीता

उतने रंग छिपाए थे तुम

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उतने रंग छिपाए  थे तुम       जितने फागुन में ना बरसे । जिन आँखों में इस दुनिया के     रंग    सभी    बेरंग   पड़े  थे        एक  उदासी  थी  नींदों  में          सारे   सपने   तंग  पड़े  थे  तुम छूटे रंग सारे छूटे    तुम को पाकर थे जो हरषे।  परत परत चेहरे पर उभरे    रंग  बसंती औ' पतझर के      दोनों  मिलकर  एक हुए थे        रंग  नदियों के ,  हैं सागर के  धरती प्यासी व्याकुल बादल      जितने सावन में ना तरसे।  उतने रंग छिपाए  थे तुम       जितने फागुन में ना बरसे ।           © केतन यादव            18 मार्च 2022 

#ट्रेनकेबाहरसे

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मानों बाहर से कोई प्राण खींच रहा हो ... बुला रहा हो घुलने मिलने समा जाने के लिए..... प्रकृति के अनंत सघन विस्तार में... मुझे अपनी देह की सीमा और क्षणिक और नश्वर लगने लगती है और असीम में मिलने की अकुलाहट और कष्टप्रद । मैंने ऐसे ही प्रेम किया है ... खुद को बार बार भुला देने तक ... घुला देने तक । शीशम और साखू के लंबे पत्रों से प्रसारित वायु न जाने कौन सा मादक गंध लिए हुए है । संभवत: वनों में से सभी फूलों , नयी अर्धविहसित अर्धविकसित कलियों , पराग कणों और कोपलों को छूते हुआ ये हवा आ रही है जिसका स्पर्श शरीर को परत दर परत का एहसास करा रहा है ।    चलती हुई रेल की घड़घड़ाहट की ध्वनि हवा के साथ मिलकर मानों कोई विशेष वाद्ययंत्र बजा रही हो ..... सब कुछ नादात्मक सब कुछ लयात्मक सा । न जाने मैं वातावरण खोज लेता हूँ या वातावरण मुझे खोज लेता है पर सब कुछ प्रतिक्षण प्रतिपल और सुंदर और भी सुंदर होता जा रहा है । चलती हुई रेल के अकेले डिब्बे में बैठा मैं अब केवल मैं हूँ। इस अकेलेपन को और अपार अंतराल को भरने की कोशिश चारों तरफ है । मेरा गंतव्य भी इस ट्रेन का आख़िरी स्टेशन है , यात्री रास्ते में

हिना मूवी ' तीन पीढ़ियों ( मेरे , पिताजी और दादाजी ) की निगाह से .....

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हिना मूवी  ' तीन पीढ़ियों ( मेरे , पिताजी और दादाजी ) की  निगाह से .....  चिट्ठिये नी दर्द फिराक़ वालिये ...।' ये अमर गीत के लेखक हैं Naqsh Lyallpuri साहेब और ये गीत जिस फिल्म़ में है उसका नाम है हिना । इस मूवी से मेरे घर में  तीन पीढ़ियों का नाता है मेरा , मेरे पिता जी का और मेरे स्व. दादा जी का । इस गाने की रिकॉर्डिंग मेरे जन्म के चौदह से भी साल पहले हो गयी थी और फिल्म मेरे जन्म के बारह  साल पहले रिलीज़ हुई । कहते हैं कि मूवी जब बन रही थी तभी इस फिल्म़ के डायरेट राज कपूर साहेब ( एक डायरेटर रणधीर कपूर भी थे ) की मृत्यु हो गयी थी । बाद में रणधीर कपूर और ऋषिकपूर ने मूवी के काम को आगे बढ़ाया ।               इस फिल्म के निर्देशक राजकपूर साहेब मेरे दादा जी के फेवरिट एक्टर थे और राजकपूर साहेब के बेटे व फिल्म के हीरो ऋषि कपूर मेरे पिता जी के फेवरिट एक्टर .... अरे रूकिए मैं अब रणवीर कपूर का नाम नहीं लेने जा रहा । इस मूवी से मेरा क्या जुड़ाव है मैं बताता हूँ । दरसल सभी लोग गाने सुन लेते हैं पर गीतकार को कम जानते हैं ।सिंगर  उसे गाकर किसी के  लेखन को सफल कर देते है पर जिसने

#meregeetonmeteriyaaden

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मेरे गीतों में तेरी यादें हैं मेरे धुन इंतजार में कबसे  नींद से वास्ता नहीं कोई  चैन आँखों ने जबसे खोया है  इक तस्वीर से बातें करके  मेरा दिल टूट करके रोया है  मेरी आँखों में तैरते सपने बह रहे इक कतार में कबसे  मेरे गीतों में तेरी यादें हैं .....‌।।1।। मेरा मन इक पतंग के जैसे तेरी हाथों में डोर इसकी है  शाम में इक नमी सी है जैसे  इन हवाओं में एक सिसकी है  तड़प रही हैं खुल के बहने को हैं ये साँसें उधार में कबसे  मेरी गीतों में तेरी यादें हैं .....।।2।। सारी कसमें वो सारे वादे हम  आखिरी साँस तक निभाएंगे कोरे पन्नों पे दिल बिखरे हैं शब्द रो - रो  के  मुस्कुराएंगे दिल की हालत तो तुम नहीं पूछो टूटे टुकड़े भी प्यार में कबसे ....।।3।।       -© Ketanyadav